वर्तमान में हमारे धर्मगुरु भगवान (परमात्मा) को निराकार बताते आ रहे हैं और उनके अनुसार वह मानते हैं कि शास्त्रों में परमात्मा को निराकार बताया है। कुछ संतों ने भगवान को एक जयोति का आकार बताया है और कहा है कि भगवान तो प्रकाश पुंज के रुप में विधमान है उनका कोई आकार नहीं है जैसे पानी की बुंद समुद्र में जाकर मिल जाती है वैसे ही आत्माएं प्रकाश रुपी परमात्मा में जाकर मिल जाती है।
लेकिन कुछ संतो ने अपनी खोज जारी रखी और शास्त्रों का अध्ययन दिन रात करते रहे । वर्तमान में उन संतो ने देवी दुर्गा को ही सर्व सृष्टि के रचयिता बताया।
एक तरफ तो परमात्मा को निराकार बताते हैं वहीं कुछ संतो का कहना है कि देवी दुर्गा ही जगत जननी है।
पवित्र गीता जी में प्रमाण है कि भगवान कौन है कैसा है काह रहता है ये सारी जानकारी इन सभी धर्मगुरुओं में से मात्र एक सच्चे गुरु के पास होगी और उस सच्चे गुरु की पहचान भी पवित्र गीता जी अध्याय 15 के श्लोक 1 2 3 4 व 16,17 में बताई गई है।
ओर गीता ज्ञान दाता ने बताया है कि हे अर्जुन! परम अक्षर ब्रह्म अपने मुख कमल से तत्वज्ञान बोलकर बताता है, उस सच्चिदानन्द घन ब्रह्म की वाणी में यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी विस्तार से कही गई है। उसको जानकर सर्व पापों से मुक्त हो जाएगा। फिर गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी सन्तों के पास जाकर समझ। उनको दण्डवत प्रणाम करके विनयपूर्वक प्रश्न करने से वे तत्वदर्शी सन्त तुझे तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे।
लेकिन कुछ संतो ने अपनी खोज जारी रखी और शास्त्रों का अध्ययन दिन रात करते रहे । वर्तमान में उन संतो ने देवी दुर्गा को ही सर्व सृष्टि के रचयिता बताया।
एक तरफ तो परमात्मा को निराकार बताते हैं वहीं कुछ संतो का कहना है कि देवी दुर्गा ही जगत जननी है।
पवित्र गीता जी में प्रमाण है कि भगवान कौन है कैसा है काह रहता है ये सारी जानकारी इन सभी धर्मगुरुओं में से मात्र एक सच्चे गुरु के पास होगी और उस सच्चे गुरु की पहचान भी पवित्र गीता जी अध्याय 15 के श्लोक 1 2 3 4 व 16,17 में बताई गई है।
यह प्रमाण आप को बताए और विशेष बात यह है कि गीता चारों वेदों का सारांश है। इसमें सांकेतिक ज्ञान अधिक है। यह भी स्पष्ट हुआ कि तत्वज्ञान गीता ज्ञान से भी भिन्न है। वह केवल तत्वदर्शी संत ही जानते हैं जिनको परम अक्षर ब्रह्म स्वयं आकर धरती पर मिलते हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा पढ़ें।
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